भारत के सुदूर
दक्षिण में विराजित कन्याकुमारी में समुद्र के भीतर एक शिला पर स्वामी विवेकानंद
का स्मारक बना है| स्वामीजी ने अपने भारतभ्रमण के दौरान इस शिला पर तीन दिन
चिंतन किया था| आज उसी शिला पर बैठ मैं प्रकृति के उस अद्भुत कलाकृति को देख रहा
था जहाँ तीन समुद्र एक दुसरें से मिलते है| कहने को तो 'हम' कहते है कि ‘तीन
समुद्रों’ का मिलाप हो रहा है| लेकिन फिर सोचा - अरे, समुंदर तो एक ही है| हम
इंसानों ने उसे तीन अलग अलग नाम दे कर बाँट दिया| और, फिर अब 'हम' ही कह रहे है कि वे मिल रहें हैं| चलो, कोई बात नही| तीन तो तीन ही सही| लेकिन हाँ, हर भारतीय ने इस शिलास्मारक को जरूर देखना
चाहिये इसमें कोई दो (या ‘तीन’) राय नहीं| J सच कहूँ तो, देखना नहीं 'महसूस' करना चाहिये| क्यूंकि, विवेकानंद शिला स्मारक कोई ‘टूरिस्ट स्पॉट’ नहीं है| वह तो एक स्फूर्तिस्थान है|
पर्यटक के वेश में जाओगे तो शायद सिर्फ ‘तीन समंदर’ देख पाओगे|
| समुद्र के भीतर विवेकानंद शिलास्मारक और तमिल संत तिरुवल्लुवर की प्रतिमा |
कन्याकुमारी से निकल कर मैं और अंकित केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम की तरफ चल पड़े| वैसे तो दूरी सिर्फ ९०
किलोमीटर की है| लेकिन यह सफ़र कुछ अलग ही था| तमिलनाडु से हम केरल में जाने वाले थे| जैसे जैसे हम केरल की तरफ आगे बढ़ रहे
थे, दुकानों पें लिखे अक्षर बदलते गये| पहले तमिल, फिर उसके बाद कभी तमिल और कभी मल्यालम, और
फिर उसके बाद मल्यालम| बड़ी सहजता से से हम एक राज्य से दूसरी राज्य में पहुँच गये थे| लकीरें तो आदमी ने ही खींची है; भूमि तो समुद्र की तरह एक ही तो है|
इसके बारे में सोचते
रह गया और फिर पता ही नहीं चला कि राष्ट्रगान की धुन मेरे होटों पर कब सवार हुई|
एक के बाद एक शायद ३-४ बार पूरा राष्ट्रगान गाने के बाद मेरी अस्वस्थता बढती चली
गयी| राष्ट्रगीत के शब्द हमेशा कि तरह मुझे आज आनंद नहीं बल्कि पीड़ा दे रहें थे, चुभ रहें थे|
पंजाब सिंध गुजरात मराठा
द्राविड उत्कल बंग
उत्तरी भारत में पंजाब से शुरू हो कर पश्चिमी तट
के गुजरात को अपने साथ लेता है| दक्षिण प्रान्त को अपने साथ जोड़ कर ओडिशा(उत्कल) को गले
लगाते हुए बंगाल में आ जाता है|
लेकिन फिर बंग प्रान्त के आगे राष्ट्रगीत रुक
क्यों जाता है? हमारा पूर्वांचल कहा है इस ‘राष्ट्र’गीत में? क्यूँ सिर्फ ‘विन्ध्य
हिमाचल यमुना गंगा’ ही शामिल है हमारे राष्ट्रगीत में? गारो-खासी पर्वतशृंखला या
अद्वितीय ब्रह्मपुत्र क्यों नहीं? क्या ये राष्ट्रगीत अधुरा नहीं है? क्या ये
राष्ट्रगीत हर किसी नागरिक का राष्ट्रगीत बना है? क्या हमारे किसी पूर्वांचली बहन ने यह सवाल पूछें तो हम कुछ जवाब दे पाएंगे?
राष्ट्रगीत केवल एक राष्ट्रिय
गीत नहीं| वह देश की एक पहचान है| देश के विचारों का प्रतिनिधित्व करता है|
दिल्ली में अरुणाचली भाई नीड़ो तान्या की हत्या कर दी गयी और
हम देखते रहे| मुंबई में पूर्वांचली भाईयों के अन्दर खौफ डाला गया और वे भारतभर से भागने के लिए
मजबूर हो गये| ‘भारत भाग्यविधाता’ के लिए इससे शर्मनाक चीज क्या है? आझादी के ६० सालों के बाद भी आज हमारे पूर्वांचली भाई-बहनों को 'क्या तुम चायनिस हो?' ऐसे पुछा जाता है| क्या कभी हमने उन्हें अपना माना है? और अगर गलती हमारी है तो फिर 'ग्रेटर नागालैंड या स्वतंत्र मणिपुर' की मांगे उठती है तो उसमे गलत ही क्या है? इसकी शुरुवात कहीं अपने राष्ट्रगीत से होती है|
इसलिए मैंने सोचा – क्यूँ ना राष्ट्रगीत को और सर्वसमावेशक बनाया जाये? उसमें ‘पूर्वांचल’ और बाकी अन्य हिस्सों को जोड़ा जाये?
अगर लकीरें इन्सान ने ही खींची है, तो
क्या फिर एक राष्ट्रगीत और समृद्ध नहीं बनाया जा सकता? उसे और सर्वसमावेशक नहीं
बनाया जा सकता?
इसी प्रयास में शुरुआत करते हुए मैंने ‘द्राविड उत्कल बंग’ के
बाद इन दो पंक्तियों को जोड़ने का विचार किया है –
पूर्वांचल मरु उत्तरांचल मध्य
कावेरी नर्मदा ब्रह्मपुत्रा
विंध्य हिमाचल यमुना गंगा....
इन दो पंक्तियों से राष्ट्रगान की समृद्धता
बढ़ेगी इसमें मुझे कोई संदेह नहीं| अगर हमने प्रदेश बांटे है तो उसकी दूरियाँ कम
करने का प्रयास भी तो हमें ही करना चाहिये ना?
लेकिन केवल राष्ट्रगीत की समावेशकता बढ़ाने से नहीं चलेगा| राष्ट्रगीत हमारी सोच का प्रतिक है| सोच समावेशक बनानी होगी| शायद तब ही हमारा विशाल सिन्धु, भारतमाँ के चरण
धोते हुए, और उर्जित, और आनंदित हो कर झूम उठेगा| और हम अत्यंत अवर्णनीय आनंद के
साथ गायेंगे – उच्छल जलधि तरंग...
बब्बू
शनिवार, ४ अक्टूबर, २०१४
तिरुवनंतपुरम, केरल
Badhiya!!!!!!!!!
ReplyDeleteVery well written :) Hope to hear from 'babbu' again and very soon ;) :P
ReplyDeleteAbhinanan apane manmei uthe mukt vicharo ko vichardhara banane ke liye..jab ise padh rahi thi to invicharoki dahakata jyada mahsus hui kyonki election ka mahol hai aur aaj ek bhi nete ekata ke baremei apani soch vyakt nahi karana chahata. Shayad todo aur shasan karo yahi hamare nasnas mei sama chuka hai. Isiliye aap jaisi uvapidhi ke aise vichar padhkar badi tasalli hotii hai ki ek din hum Vasudev kutumbkam bana kar hi rahenge.
ReplyDeletechhan blog lihale aahes ...
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