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आज मैं “लिखने” जा रहा हूँ...

ई महीनों से सोच रहा था कि मन में आनेवाले विचारों को कागज़ पे उतारूँ| लेकिन कभी समय का कारण देता रहा, तो कभी शब्दों की नि:शब्दता का| सच कहूँ तो, आलस्य ही इसका कारण है जो हमेशा मुझे 'कारण' देने के लिए प्रवृत्त करता रहा| लेकिन आज विजयादशमी (दशहरा) का दिवस है, सीमोल्लंघन का दिवस है| इसलिए मैंने भी सोचा कि आज खुद ही के आलस पर विजय प्राप्त करने हेतु शुरुआत करूँ| तो आइये मै पहल कर रहा हूँ| ये मेरा पहला ब्लॉग है|

लेकिन क्या शुरुआत करना भी इतना आसान था? बिलकुल नहीं| लिखूँ तो क्या लिखूँ? कौनसी बोली में लिखूँ? ऐसे कई द्वंद मन में उठे| प्रात: १ बजे से बस में बैठे बहुत सोचा| कई सारे विषय मन में उठ रहे थे| लेकिन बड़ा सवाल तो बोली का था|

“भाई, कौनसी भाषा में लिखूँ?” – मैंने मन से पूंछा|

वैसे ३ ही तो पर्याय थे – मराठी, अंग्रेजी और हिंदी| हिंदी और अंग्रेजी में लिखना एक चुनौती थी| मराठी में लिखूंगा तो लिखने में आसानी तो होगी| लेकिन क्या मेरे सारे मित्र पढ़ पाएँगे?

“क्या रे, तू लिख किसके लिए रहा है? खुद के लिए कि दूसरों के लिए?” - मेरे मन ने प्रतिसवाल किया|

मुद्दा तो सही था| आखिर मैं लिख किस के लिए रहा हूँ? फिर मैंने सोचा और कहा-

“मैं खुदको व्यक्त करने के लिए लिख रहा हूँ, ना कि किसी दूसरों के लिए|”
सिर्फ खुद के लिए लिखना है तो ब्लॉग क्यूँ लिख रहा हूँ?”

बात तो ये भी सही थी| ब्लॉग तो दूसरों तक अपने विचार पहुँचाने का माध्यम है|

“अच्छा| तो फिर अंग्रेजी में क्यूँ नहीं?” – मन का अगला सवाल|  

अरे भाई आजकल अंग्रेजी में बोलना और असाइनमेंट लिखना रोज की झंझट हो गयी है| हिंदी में लिखना तो कब का बंद हो चुका है| कहीं हिंदी में लिखना भूल तो नहीं जाऊँगा? वैसे, काफ़ी लोग जानते नहीं होंगे कि मेरे नानाजी और दादाजी दोनों की मातृभाषा हिंदी थी| मेरे दादाजी, जिन्हें हम ‘बाबूजी’ कहते थे, हिंदी भाषा के उपासक थे| उनकी स्मृति से प्रेरणा लेते हुए मैंने ठान लिया – पहला ब्लॉग तो मैं हिंदी में ही लिखूँगा|

अच्छा, भाषा से याद आया...कल रात जबसे बेंगलुरु से दक्षिण भारत घूमने के लिये निकला हूँ तबसे अबतक लगभग २४ घंटे बीत चुके हैं और सिर्फ़ तमिल भाषा सुनाई दे रही है| बेंगलुरु से सेलम, सेलम से मदुरै, मदुरै से नागरकोइल से हम पहुंचे आखिर कन्याकुमारी| बस में भी नॉन-स्टॉप तमिल गाने चल रहे थे| बस से बाहर देखूँ तो भी तमिल में लिखे हुए बोर्ड्स| बड़ी दिक्कत हो गयी थी| ना बोली समझ सकते हैं, ना लिपि समझ में आती है| कई बार तो ऐसा लगा की ये बसवाले अन्ना कहीं गलत बस में तो नहीं बैठा रहे हैं ना? कहीं हमें कोई फँसा तो नहीं रहा है ना? हमने सही सही तो समझा है ना? एक ही चीज़ को दो-तीन बार पूछता और फिर ही किसी बस में चढ़ता| एक ही दिन में मेरे अन्दर का शक काफ़ी बढ़ गया था| क्या मेरा शक लाज़मी नहीं था?


आप न कुछ समझ सकते हो, न कुछ पढ़ सकते हो, न कुछ पूछ सकते हो, न कुछ तय कर सकते हो| ऐसे हालात में क्या कोई अकेला महसूस नहीं करेगा? परेशान महसूस नहीं करेगा? शोषित महसूस नहीं करेगा? करेगा ही न?

तो फिर सोचो – भारत के लाखों बच्चे आज भी पाठशाला नहीं जा सकते, अपने आजूबाजू लिखे बोर्ड पढ़ नहीं सकते, अपना खुद का नाम-पता लिख नहीं सकते, अपना हस्ताक्षर तक करना नहीं जानते| वे अनपढ़ ही रह जाते हैं और ज्ञान की धारा से वंचित रह जाते है| फिर लोग उन्हें फँसाते हैं, उनका इस्तेमाल करते हैं और उनका शोषण करते हैं|

आज मैंने उस अनपढ़ बच्चे का दर्द महसूस किया है| शायद इसीलिए, आज मैंने ‘लिखने’ की शुरुआत की है|

-बब्बू
शुक्रवार, ३ अक्टूबर, २०१४
विवेकानंद केंद्र, कन्याकुमारी 


(मेरे पहले मनोगत के साथीदार, साक्षीदार और समीक्षक बनने के लिये मेरे पागल दोस्त अंकित शर्मा और स्नेहा शर्मा का मन:पूर्वक धन्यवाद!)

Comments

  1. मस्त रे दादा !!! आवडला (y)

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  2. Mast re choksi...lai bhari asevh lihat raha..mi jarur vachen...

    ReplyDelete
  3. Khara ahe!...apan shikato kahitari bananya sathi pan far kvachit lok astat ki je etarana shikavanyasthi shikatat...masta lihile ahes dada...asech lihit ja..

    ReplyDelete
  4. Initially i wrote just 4 lines. Inspired by your thought in writing i added next lines later on that day.

    So here, your gift to celebrate your beginning, as i promised -
    लिखो अपने लिए, अपनी खुदी और खुदा बचाने को,
    लिखो मन को बहलाने, समझाने को,
    लिखो अपनी आज़ादिया, उद्दाने पाने को,
    लिखो अपना हक़ जताने या परेशानियां सुलझाने को,
    पर सिर्फ अपने लिए ही क्यों!
    लिखो दुसरो के लिए,
    अपना जज़्बा समझाने और खुद को जताने को
    या सिर्फ एक दोस्त को सताने को
    और लिखो उनके लिए जो नही जानते लिखने की गहराइया
    -रचना

    Keep writing :)

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