“आ ज मेरे घर चलेंगे सर!”, थानेंद्र ने घोषित कर दिया. “नहीं सर. आज मेरे घर.”, नीलकंठ बोला. “नहीं सर. मैने पहले बोला था”, थानेंद्र गुस्सेसे बोला. “हां. उसने पहले बोला था. आज मै थानेंद्र के घर जाऊंगा”, थानेंद्र का लाल चेहरा देख मैने तुरंत निर्णय बता दिया. पिछले दो दिन से शाला के बाद किसी न किसी के घर जाने का न्योता मिल रहा था. कल किशन के घर गया था. उसके झोपड़े में बड़ी प्यार से बैठाकर उसने उसके माँ के हात के बने हुए मुरमुरे और बिना दूध की चाय पिलायी. उसके बापू मजदूरी करते है और माँ बाजार में मुरमुरे बेचती है. माँ ने बोला, “मेरा बच्चा पढने में कमजोर हे. लेकिन घर के काम में पूरा एक नंबर. खाना भी बना लेता है.” आज थानेंद्र के घर ऐसेही कुछ देखने-सुनने को मिलेगा यही सोचकर मोटर-सायकिल शुरू किया. थानेंद्र और नीलकंठ भी गाडी पर कूदे. दोनों ही बड़े उस्ताहित थे. किशन, नीलकंठ, थानेंद्र यह सब मेरे पांचवी कक्षा के बच्चे है. छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले में राजानवागाँव नाम के एक छोटेसे गाव में सरकारी शाला में पढ़ते है. मै उन्हें पिछले दो हफ्तों से गणित पढ़ा रहा हूँ. कीचड़ भरे रस्ते से छोटी छोट...