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Showing posts from October, 2014

उच्छल जलधि तरंग...

भा रत के सुदूर दक्षिण में विराजित कन्याकुमारी में समुद्र के भीतर एक शिला पर स्वामी विवेकानंद का स्मारक बना है| स्वामीजी ने अपने भारतभ्रमण के दौरान इस शिला पर तीन दिन चिंतन किया था| आज उसी शिला पर बैठ मैं प्रकृति के उस अद्भुत कलाकृति को देख रहा था जहाँ तीन समुद्र एक दुसरें से मिलते है| कहने को तो 'हम' कहते है कि ‘तीन समुद्रों’ का मिलाप हो रहा है| लेकिन फिर सोचा - अरे, समुंदर तो एक ही है| हम इंसानों ने उसे तीन अलग अलग नाम दे कर बाँट दिया| और, फिर अब 'हम' ही कह रहे है कि वे मिल रहें हैं| चलो, कोई बात नही| तीन तो तीन ही सही| लेकिन हाँ, हर भारतीय ने इस शिलास्मारक को जरूर देखना चाहिये इसमें कोई दो (या ‘तीन’) राय नहीं| J सच कहूँ तो, देखना नहीं 'महसूस' करना चाहिये| क्यूंकि, विवेकानंद शिला स्मारक कोई ‘टूरिस्ट स्पॉट’ नहीं है| वह तो एक स्फूर्तिस्थान है| पर्यटक के वेश में जाओगे तो शायद सिर्फ ‘तीन समंदर’ देख पाओगे| समुद्र के भीतर विवेकानंद शिलास्मारक और तमिल संत तिरुवल्लुवर की प्रतिमा कन्याकुमारी से निकल कर मैं और अंकित केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम की तरफ चल पड़े...

आज मैं “लिखने” जा रहा हूँ...

क ई महीनों से सोच रहा था कि मन में आनेवाले विचारों को कागज़ पे उतारूँ| लेकिन कभी समय का कारण देता रहा, तो कभी शब्दों की नि:शब्दता का| सच कहूँ तो, आलस्य ही इसका कारण है जो हमेशा मुझे 'कारण' देने के लिए प्रवृत्त करता रहा| लेकिन आज विजयादशमी (दशहरा) का दिवस है, सीमोल्लंघन का दिवस है| इसलिए मैंने भी सोचा कि आज खुद ही के आलस पर विजय प्राप्त करने हेतु शुरुआत करूँ| तो आइये मै पहल कर रहा हूँ| ये मेरा पहला ब्लॉग है| लेकिन क्या  शुरुआत  करना भी इतना आसान था? बिलकुल नहीं| लिखूँ तो क्या लिखूँ? कौनसी बोली में लिखूँ? ऐसे कई द्वंद  मन में उठे| प्रात: १ बजे से बस में बैठे बहुत सोचा| कई सारे विषय मन में उठ रहे थे| लेकिन बड़ा सवाल तो बोली का था| “भाई, कौनसी भाषा में लिखूँ?” – मैंने मन से पूंछा| वैसे ३ ही तो पर्याय थे – मराठी, अंग्रेजी और हिंदी| हिंदी और अंग्रेजी में लिखना एक चुनौती थी| मराठी में लिखूंगा तो लिखने में आसानी तो होगी| लेकिन क्या मेरे सारे मित्र पढ़ पाएँगे? “क्या रे, तू लिख किसके लिए रहा है? खुद के लिए कि दूसरों के लिए?” - मेरे मन ने प्रतिसवाल किया| ...