भा रत के सुदूर दक्षिण में विराजित कन्याकुमारी में समुद्र के भीतर एक शिला पर स्वामी विवेकानंद का स्मारक बना है| स्वामीजी ने अपने भारतभ्रमण के दौरान इस शिला पर तीन दिन चिंतन किया था| आज उसी शिला पर बैठ मैं प्रकृति के उस अद्भुत कलाकृति को देख रहा था जहाँ तीन समुद्र एक दुसरें से मिलते है| कहने को तो 'हम' कहते है कि ‘तीन समुद्रों’ का मिलाप हो रहा है| लेकिन फिर सोचा - अरे, समुंदर तो एक ही है| हम इंसानों ने उसे तीन अलग अलग नाम दे कर बाँट दिया| और, फिर अब 'हम' ही कह रहे है कि वे मिल रहें हैं| चलो, कोई बात नही| तीन तो तीन ही सही| लेकिन हाँ, हर भारतीय ने इस शिलास्मारक को जरूर देखना चाहिये इसमें कोई दो (या ‘तीन’) राय नहीं| J सच कहूँ तो, देखना नहीं 'महसूस' करना चाहिये| क्यूंकि, विवेकानंद शिला स्मारक कोई ‘टूरिस्ट स्पॉट’ नहीं है| वह तो एक स्फूर्तिस्थान है| पर्यटक के वेश में जाओगे तो शायद सिर्फ ‘तीन समंदर’ देख पाओगे| समुद्र के भीतर विवेकानंद शिलास्मारक और तमिल संत तिरुवल्लुवर की प्रतिमा कन्याकुमारी से निकल कर मैं और अंकित केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम की तरफ चल पड़े...